सबसे पहले लेखपाल से मिलकर की जाती है खसरे में पेड़ों की संख्या से छेड़छाड़
-डंडिया के जंगल में रात के अंधेरे में आरे व कुल्हाड़े के चलने आबाज सुनी जा सकती है
-पिपली वन क्षेत्र को ही चंद लोगों ने अपना व्यापार बना डाला
-सरकार बृक्षारोपण पर हर साल करोडों रुपये खर्च कर रही है लेकिन रिजल्ट शून्य
बिलासपुर। सरकार भले ही पर्यावरण को हरा भरा बनाने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चला रही हो। लाखों की तादात में पौधे लगा रही हो, लेकिन विकास की अंधी दौड़ में हरियाली सिमटती जा रही है। आम के बड़े-बड़े बागों को काटकर कालोनियां बनाई जा रही हैं। जिले में आरक्षित वन क्षेत्र तक सिमट गया है। शीशम और सागोन जैसी कीमती लकड़ी वनों से कम होती जा रही है। वर्तमान में पीपली के वन की 2028 हेक्टेयर जमीन पर अवैध कब्जा हो चुका है।
28 जुलाई को प्रकृति संरक्षण दिवस मनाया जाता है। ताकि, हरियाली को बचाया जा सके। इसमें पेड़ पौधों की उपयोगिता के बारे में बताया जाता है। लोगों को प्रेरित किया जाता है कि वे अधिक से अधिक पौधे लगाएं और पर्यावरण संरक्षण की मुहिम को कारगर साबित करने में योगदान दें। लेकिन, जिम्मेदार अफसरों की अनदेखी और विकास की अंधी दौड़ में सरकार के तमाम प्रयास कागजी साबित हो रहे हैं। नतीजतन, साल दर साल वातावरण में बदलाव देखने को मिल रहा है। कमोबेश हर जगह यही हाल है। सिर्फ रामपुर की ही बात की जाए, तो यहां दो आरक्षित वन क्षेत्र हैं। बिलासपुर के डंडिया वन में 1633 हेक्टेयर और स्वार के पीपली वन में 4930 हेक्टेयर वन क्षेत्र आरक्षित है, लेकिन वर्षों से इस आरक्षित वन क्षेत्र को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। लकड़ी माफिया खैर, सागोन और शीशम के कीमती पेड़ों को काटने में लगे हैं। वह भी वन विभाग के अफसरों की देखरेख में। खासकर, पीपली वन, जहां अक्सर लकड़ी माफिया के बीच फायरिंग तक की घटनाएं सामने आती रहती हैं। ये लोग न सिर्फ पेड़ों का अवैध कटान करते हैं, बल्कि जमीनों पर भी कब्जा कर लेते हैं। विभागीय अफसरों की मानें तो यह वन क्षेत्र 20 गांवों से घिरा हुआ है। ऐसे में अवैध कटान से लेकर अवैध कब्जे तक करने वाले भी इन्हीं गांवों के लोग हैं। जमीन पर कब्जे का यह सिलसिला आजादी के बाद से चला आ रहा है। लिहाजा, पीपली के वन की अब तक 2028 हेक्टेयर जमीन पर अवैध कब्जा हो चुका है।
जिले में आरक्षित वन क्षेत्र पर एक नजर
डंडिया वन-1633 हेक्टेयर
पीपली वन-4930 हेक्टेयर
अवैध कब्जा-2028 हेक्टेयर
हरे भरे पेड़ों को काटकर बस रहीं कालोनियां
रामपुर। शहर में तमाम हरे भरे बाग थे, जिनमें आम, अमरूद जैसे फलों के पेड़ लगे हुए थे। किन्तु, बढ़ती आबादी के चलते लोगों की आवासीय आवश्यकताएं भी बढ़ रही हैं। ऐसे में प्रॉपर्टी डीलिंग का काम तेजी से पैर पसार रहा है। प्रॉपर्टी डीलर बागों को काटकर नई-नई कालोनियां बसा रहे हैं। सिर्फ रामपुर की ही बात की जाए तो करीब दो दशक पहले बिलासपुर नगर के नैनीताल रोड, रामपुर रोड व चन्देन रोड, ज्वालानगर स्थित आगापुर रोड हरे भरे पेड़ों से गुलजार था। शाहबाद रोड पर भी तमाम पेड़ लगे थे, लेकिन आज वहां बड़ी-बड़ी कालोनियां बस गई हैं। सड़क बनाने या चौड़ीकरण के समय संबंधित विभाग की ओर से पेड़ों को तो काट दिया जाता है, लेकिन दोबारा पेड़ों को लगाने के लिए कोई ठोस उपाए नहीं किए जाते। यही वजह है, जो हरियाली सिमट रही है और कंक्रीट की इमारतें बुलंद हो रही हैं।
डंडिया वन-1633 हेक्टेयर
पीपली वन-4930 हेक्टेयर
अवैध कब्जा-2028 हेक्टेयर
हरे भरे पेड़ों को काटकर बस रहीं कालोनियां
रामपुर। शहर में तमाम हरे भरे बाग थे, जिनमें आम, अमरूद जैसे फलों के पेड़ लगे हुए थे। किन्तु, बढ़ती आबादी के चलते लोगों की आवासीय आवश्यकताएं भी बढ़ रही हैं। ऐसे में प्रॉपर्टी डीलिंग का काम तेजी से पैर पसार रहा है। प्रॉपर्टी डीलर बागों को काटकर नई-नई कालोनियां बसा रहे हैं। सिर्फ रामपुर की ही बात की जाए तो करीब दो दशक पहले बिलासपुर नगर के नैनीताल रोड, रामपुर रोड व चन्देन रोड, ज्वालानगर स्थित आगापुर रोड हरे भरे पेड़ों से गुलजार था। शाहबाद रोड पर भी तमाम पेड़ लगे थे, लेकिन आज वहां बड़ी-बड़ी कालोनियां बस गई हैं। सड़क बनाने या चौड़ीकरण के समय संबंधित विभाग की ओर से पेड़ों को तो काट दिया जाता है, लेकिन दोबारा पेड़ों को लगाने के लिए कोई ठोस उपाए नहीं किए जाते। यही वजह है, जो हरियाली सिमट रही है और कंक्रीट की इमारतें बुलंद हो रही हैं।