प्लाईवुड इंडस्ट्री में नहीं रूक रहा कृषि योग्य यूरिया का प्रयोग,
बिलासपुर । जनपद में प्लाईवुड फैक्ट्रियों में कृषि योग्य यूरिया का प्रयोग नहीं रूक रहा है। जनपद में प्लाईवुड इंडस्ट्री में टेक्निकल यूरिया की बजाए कृषि यूरिया का प्रयोग किया जा रहा है।
पैसा बचाने चक्कर में होता है कृषि यूरिया का यूज
कृषि उपयोग यानि नीम कोटेड यूरिया से बोर्ड यूनिट में ग्लू तैयार होता है। जिससे बोर्ड चिपकाया जाता है। हालांकि इंडस्ट्री के लिए टेक्निकल ग्रेड का यूरिया है। टेक्निकल ग्रेड यूरिया का प्रति बैग 3688 रुपये, जबकि सब्सिडी वाला यूरिया 300 रुपये में मिल जाता है। अधिकारियों की सुस्ती व सस्ते के चक्कर में नीम कोटेड यूरिया का अवैध प्रयोग हो रहा है। जरूरत पड़ने पर किसानों को खाद के लिए भटकना पड़ता है। अवैध यूरिया का धंधा करने वालों ने क्षेत्र बांटा हुआ भाकियू के जिला अध्यक्ष सलीम वारसी ने इस बारे में कई दफा प्रदर्शन भी कर चुके हैं। लेकिन प्लाईवुड इंडस्ट्री में नीम कोटेड यूरिया का इस्तेमाल नहीं रुक पा रहा है ।
सौ किलो ग्लू में लगता है 40 किलो खाद
सूत्रों के मुताबिक एक दिन में टेक्निकल ग्रेड यूरिया के मात्र 150 से 200 बैग की खपत है। देशभर में बोर्ड की 33 सौ यूनिट और जिले में 400 यूनिटें हैं। इनमें बोर्ड तैयार करने के लिए एक हजार प्रेस हैं। 100 किलो ग्लू बनाने में 40 किलो यूरिया (टेक्निकल ग्रेड या कृषि यूरिया), 60 किलो फोरमलडिहाइड कैमिकल, कास्टिक सोडा, एसिटिक एसिड, व अन्य कैमिकल को केटल में डालकर मिलाए जाते हैं। बाद में ग्लू व मैदा भी मिलता है।
आठ गुणा चार नौ एमएम के प्लाइबोर्ड को चिपकाने में तीन किलो 264 ग्राम ग्लू यूज होता है। इसमें 1.50 किलो ग्राम यूरिया व अन्य कैमिकल होता है। एक प्रेस 10 से 12 घंटे में आठ से 10 हजार फीट बोर्ड तैयार होता है। इसको चिपकाने के लिए 1300 से 1500 किलोग्राम ग्लू की आवश्यकता होती है। अनुमान के मुताबिक प्रेस की संख्या के हिसाब से हर रोज करीब दस हजार बैग की जरूरत है।
भारतीय किसान यूनियन भानू ने आरोप लगाया है कि नीम कोटेड यूरिया का दुरुपयोग किसान हित में नहीं क्योंकि यह भारतीय किसानों को सब्सिडी पर मिलता है सरकार का कैमिकल एंड फर्टिलाइजर मंत्रालय हर वर्ष हजारों करोड़ रूपया की सब्सिडी दी जाती है ।लेकिन इस सब्सिडी खाद का उपयोग प्लाईवुड इंडस्ट्री में जमकर हो रहा है।