उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ संपन्न हुई छठ पूजा, जानें इस व्रत के बड़े लाभ





जयदीप गुप्ता चीफ एडिटर नेशनल पुलिस न्यूज
बिलासपुर। आज उदयीमान सूर्य की साधना के साथ चार दिवसीय छठ महापर्व संपन्न हो गया। भगवान सूर्य और छठी मैया की पूजा समर्पित इस कठिन व्रत के नियम, धार्मिक महत्व और लाभ के बारे में जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख मान्यता है कि जितना लम्बा सिंदूर होगा उतनी ही लम्बी पति की आयु होगी। इस दौरान नगर के डाम कालोनी स्थित छठ घाट पर व्रती महिलाओं का जमघट लग गया। सुरक्षा की मद्देनजर पुलिस बल छठ घाट पर मौजूद रहे। इस दौरान मुख्य रूप से सुनीता मिश्रा, ज्योति सिंह, प्रेम शिला तिवारी, शिव कुमारी, संध्या सिंह, तनु गुप्ता, सीमा मिश्रा, मनीषा, शकुंतला देवी, प्रीति द्विवेदी, सावित्री देवी, प्रियंका पांडे, मनीषा आदि व्रती महिलाओं भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया।
नहाय खाय से शुरू हुए आस्था के महापर्व छठ पूजा का आज चौथे दिन उगते हुए सूर्य देवता को अर्घ्य देने के साथ ही समापन हो गया। छठ व्रत के चौथे दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद इस व्रत के पारण का विधान है। चार दिनों तक चलने वाले इस कठिन तप और व्रत के माध्यम से हर साधक अपने घर-परिवार और विशेष रूप से अपनी संतान की मंगलकामना करता है। बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड समेत देश के तमाम हिस्सों में मनाया जाने वाला छठ पर्व छठी मैया और प्रत्यक्ष देवता भगवान भास्कर की विशेष पूजा के लिए किया जाता है। आइए इस कठिन व्रत के जप-तप से जुड़े नियम और उससे होने वाले लाभ के बारे में विस्तार से जानते हैं ।
छठ पूजा का धार्मिक महत्व
भगवान भास्कर की महिमा तमाम पुराणों में बताई गई है। भगवान सूर्य एक ऐसे देवता हैं, जिनकी साधना भगवान राम और श्रीकृष्ण के पुत्र सांब तक ने की थी। सनातन परंपरा से जुड़े धार्मिक ग्रंथों में उगते हुए सूर्य देव की पूजा को अत्यंत ही शुभ और शीघ्र ही फलदायी बताया गया है, लेकिन छठ महापर्व पर की जाने वाली सूर्यदेव की पूजा एवं अर्घ्य का विशेष महत्व बताया गया है. मान्यता है कि छठ व्रत की पूजा से साधक के जीवन से जुड़े सभी कष्ट पलक झपकते दूर हो जाते हैं और उसे मनचाहा वरदान प्राप्त होता है।
छठ पूजा का आध्यात्मिक महत्व
भले ही दुनिया कहती है कि जो उदय हुआ है, उसका डूबना तय है, लेकिन लोक आस्था के छठपर्व में पहले डूबते और बाद में दूसरे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का यही संदेश है कि जो डूबा है, उसका उदय होना भी निश्चित है, इसलिए विपरीत परिस्थितियों से घबराने के बजाय धैर्यपूर्वक अपना कर्म करते हुए अपने अच्छे दिनों के आने का इंतजार करें, निश्चित ही भगवान भास्कर की कृपा से सुख-समृद्धि और सौभाग्य का वरदान मिलेगा।
कैसे दिया जाता है सूर्य को अर्घ्य
सनातन परंपरा में प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्यदेव को न सिर्फ छठ पूजा के आखिरी दिन बल्कि प्रतिदिन अर्घ्य देते समय जिन नियमों का हमेशा ख्याल रखना चाहिए, आइए उसे विस्तार से जानते हैं।
भगवान सूर्य को प्रात:काल हमेशा उदय होते समय अर्घ्य देना ही सबसे उत्तम माना गया है, ऐसे में सूर्य की पूजा एवं अर्घ्य देने के लिए हमेशा सूर्योदय से पहले उठकर स्नान-ध्यान करके स्वच्छ वस्त्र पहन कर ही उनकी पूजा करें.
भगवान सूर्य देवता के उदय होते समय सबसे पहले उन्हें प्रणाम करें और उसके बाद एक तांबे के लोटे में रोली, अक्षत, लाल पुष्प और पवित्र जल डालकर पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ अर्घ्य दें.
सूर्य देवता को हमेशा नंगे पांव अर्घ्य दिया जाता है, लेकिन ऐसा करते समय इस बात का पूरा ख्याल रखें कि सूर्य देवता का दिये गये अर्ध्य का जल किसी के पैर के नीचे न आए.
सूर्य देवता को अर्घ्य देते समय तांबे के लोटे को दोनों हाथों से अपने सिर के उपर ले जाकर इस तरह से जल गिराएं कि उसकी धार के बीच से आप सूर्य देवता के दर्शन कर सकें.
सूर्य देवता को जल देने के बाद धूप-दीप जलाकर आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ या फिर सूर्य मंत्र का जाप करें।
सूर्य को अर्घ्य देते समय जपें ये मंत्र
छठ महापर्व पर भगवान सूर्य देव को अर्घ्य एवं अन्य दिनों में उनकी पूजा करते समय नीचे दिए गए मंत्रों का जप करने पर शीघ्र ही आपको मनाचाहा वरदान प्राप्त होगा
‘ॐ एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते, अनुकंपय माम् भक्तया गृहाणाघ्र्यम् दिवाकर।।’