जनपद में नीली बत्ती लगाने में नियम कानून दरकिनार । कई सरकारी व निजी वाहन नीली बत्ती लगाकर दिखा रहे हैं अपना रुतबा
रामपुर। टोल बचाने के लिए मुख्यालय छोड़ते ही कई प्रशासनिक अधिकारी नीली बत्ती का सहारा लेते हैं जिससे उनकी धनराशि सुरक्षित बनी रहे। इतना ही नहीं वह अपने वाहनों में इस बत्ती को सुरक्षित रख लेते हैं और जैसे ही मुख्यालय छोड़ते हैं उसको ऊपर लगाकर पूरा रुतबा दिखाने का प्रयास करते हैं जिसमें जिले व तहसील के अधिकारी अधिशाषी अभियंता शामिल हैं अपनी निजी गाड़ी पर नीली बत्ती लगाकर खुद या उनके मित्र नीली बत्ती का रूतबा दिखा रहे हैं । कई तो यह निजी या सरकारी वाहन नीली बत्ती के विदेशी शराब की दुकानों पर अपना रुतबा दिखा कर मुफ्त की शराब का मजा ले रहे हैं । इसके अलावा यह नीली बत्ती की अवैध वाहन अवैध वसूली में भी लिप्त हैं । जबकि इन्हें लगाने का कोई भी अधिकार नहीं है।
जबकि जिले के उच्च अधिकारी व आरटीओ ने कहा कि अगर कोई नीली बत्ती का अवैध रूप से उपयोग कर रहा है तो उसके खिलाफ जल्द ही कार्रवाई अमल में लाई जाएगी और इसकी छानबीन भी कराई जाएगी कि कौन-कौन से अधिकारी नीली बत्ती का प्रयोग कर सकते हैं अगर वह इसके दायरे में नहीं आते होंगे तो उन्हें नीली बत्ती हटवाने के निर्देश भी जारी किए जाएंगे। वहीं जनपद में नीली बत्ती का लगातार दुरुपयोग होता जा रहा है जिसका मुख्य कारण कि टोल पर जो इनसे टैक्स वसूला जाता है वह न लगे। इतना ही नहीं क्षेत्र में भी रुतबा बरकरार रहे जबकि यह बत्ती लगाने का प्रावधान जिले स्तर पर जनपद न्यायाधीश एवं उनके समकक्ष न्यायिक सेवा के अधिकारीगण, जिला मजिस्ट्रेट, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक व पुलिस अधीक्षक जो जिले के प्रभारी हों, मुख्य चिकित्सा अधिकारी, अपर जिला मजिस्ट्रेट, नगर मजिस्ट्रेट, उप जिला मजिस्ट्रेट, कार्यकारी मजिस्ट्रेट नीली बत्ती लगा सकते हैं। प्रभारी निरीक्षक, थानाध्यक्ष, क्षेत्राधिकारी, अपर पुलिस अधीक्षक, प्रवर्तन संबंधी ड्यूटी पर तैनात परिवहन, आबकारी, व्यापार कर विभाग के अधिकारी तथा वन विभाग के संबंधित प्रवर्तन अधिकारी नीली बत्ती लगा सकते हैं परंतु अगर चेकिंग अभियान छेड़ा जाए तो नियम विरुद्ध कई अधिकारी इस नीली बत्ती का दुरुपयोग करके कानून का खुला उल्लंघन कर रहे हैं। कानून सबके लिए बराबर है सिर्फ अपना वीआईपीपन बरकरार करने के लिए यह नीली बत्ती लगाकर आम जनता पर रुआब गांठने का काम करते हैं। वहीं ग्रामीण क्षेत्र में भी जब ऐसे अधिकारी जाते हैं तो जनता भयभीत हो जाती है और वह सही बात को भी इन अधिकारियों के सामने नहीं रख पाती। इतना ही नहीं इनके वाहनों में पर्याप्त पुलिस बल से लेकर पूरा तामझाम रहता है जिसकी वजह से जो विकास की योजनाएं चलाई जा रही हैं और जिनका सत्यापन इन्हीं अधिकारियों को करना है वह सिर्फ खा-खा-खैया तक ही सीमित होकर रह जाती हैं। जनहित में ऐसे अधिकारी अगर कानून का खिलवाड़ करेंगे तो आम जनता से क्या अपेक्षा रखी जा सकती है।
नियम क्या है
वर्तमान में अवैध रूप से लाल या नीली बत्ती लगाने पर मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 177 के तहत 100 से 300 रुपए तक का जुर्माना करने और बत्ती हटाने का प्रावधान है। इसके साथ ही बत्ती का दुरुपयोग करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों के विरुद्ध आरोप साबित होने पर सीसीए नियम 17/16 के अंतर्गत कार्रवाई होती है।
अवैध रूप से बत्ती लगाने पर कार्रवाई
अवैधरूप से लाल या नीली बत्ती का उपयोग करने पर मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 177 के तहत अधिकारियों और कर्मचारियों के विरूद्व सीसीए नियम 17/16 के तहत कार्रवाई होती है। दोनों में जांच कमेटी गठित की जाती है। इसमें 17 सीसीए में आरोप साबित होने पर वेतन वृद्धि, 16 सीसीए में सेवामुक्त एवं वेतन वृद्धि रोकी जा सकती है। इसके अतिरिक्त 100 से 300 रुपए तक का जुर्माना किया जा सकता है।
यह था सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीमकोर्ट ने 10 दिसंबर,13 को केंद्र सरकार द्वारा 11 जनवरी, 2002 एवं 25 जुलाई, 2005 को जारी अधिसूचना को उचित मानते हुए राज्य सरकार को उसी के अनुरूप संशोधित अधिसूचना जारी करने के निर्देश दिए थे। वहीं कोर्ट ने मल्टीटोन हॉर्न तथा अन्य सायरन हूटर के अनधिकृत उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के निर्देश दिए थे। इस आधार पर विभाग ने 11 जुलाई, 2006 में जारी अधिसूचना में संशोधन कर नई अधिसूचना जारी की।